विश्व धरोहर में से एक great living Chola temple जिसके निम्न fact hai. Great Chola मंदिरों के बारे में- About Great living Chola temple चोला मंदिर का वास्तुकला- Architecture of Chola temple चोला मंदिर के खुलने का समय - Opening Timing of Chola temple चोला मंदिर की अतिरिक्त जानकारी- Extra information of Chola temple ग्रेट लिविंग चोल मंदिरों का पता- Address of great living Chola temple चोला मंदिर का टिकट - Ticket of Chola temple ऑनलाइन टिकट बुकिंग - Online ticket booking बकाया सार्वभौमिक मूल्य- Outstanding Universal Value Great Chola मंदिरों के बारे में- About Great living Chola temple भारत के तमिलनाडु में स्थित, ग्रेट लिविंग चोल मंदिर चोल साम्राज्य के राजाओं द्वारा बनाए गए थे। मंदिर मास्टरपीस हैं और वास्तुकला, मूर्तिकला, पेंटिंग और कांस्य कास्टिंग के शानदार काम को उजागर करते हैं। ग्रेट लिविंग चोल मंदिर एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है जिसे 11 वीं और 12 वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की अवधि के बीच बनाया गया था। साइट में तीन महान मंदिर शामिल हैं। जिनमें तंजावुर में बृहदिश्वर मंद
Mohabodhi temple को ही महाबोधि विहार कहा जाता है इसे Unesco world heritage site में भी जगह प्राप्त है यह वही जगह है। जहां पर भगवान गौतम बुद्ध ने 6 वी शताब्दी पूर्व में ज्ञान की प्राप्ति की थी। यह बिहार राज्य के बोधगया जिले में स्थित है। बोधगया को Unesco world heritage site में 2002 में शामिल किया गया था। यह भारत के दूसरे दर्शन स्थल की तरह ही एक बहुत बहुत ही प्रसिद्ध स्थल है।
Mohabodhi temple in hindi - महाबोधि मंदिर हिंदी
Mohabodhi temple मुख्य बिहार महाबोधि विहार के नाम से जाना जाता है इस मंदिर की बनावट महान सम्राट अशोक के द्वारा स्थापित स्तूप के समान ही है। इसके अंदर एक बहुत ही बड़ी गौतम बुद्ध की एक मूर्ति है। यह मूर्ति लेटी हुई है जिसे पद्मासन मुद्रा कहते हैं। यह स्थान मुख्य तौर से गौतम बुद्ध के ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है जिस स्थान पर गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसके चारों तरफ पत्थर की रेलिंग की गई है। अगर बात की जाए सबसे पुराने अवशेषों की तो इस रेलिंग में लगे पत्थर ही Mohabodhi temple के सबसे पुराने अवशेष हैं। इस बौद्ध बिहार के परिसर में एक पार्क है जो दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है जहां पर बौद्ध भिक्षु अपना ध्यान साधना करते थे। इस बिहार में घूमने की अनुमति तो सभी को है लेकिन इससे पहले प्रशासन की अनुमति लेना आवश्यक है।
Mohabodhi temple में उन सात स्थानों को चिन्हित किया गया है जहां पर भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद 7 सप्ताह का समय व्यतीत किया था। इस बिहार में एक बोधि वृक्ष है जिसका उल्लेख जातक कथाओं में मिलता है जिसके नीचे भगवान गौतम बुद्ध ने बैठकर ज्ञान की प्राप्ति की थी। जो आमतौर से एक पीपल का वृक्ष है। यह इस विहार के पीछे स्थित है। इस समय किस बोधि वृक्ष की पांचवी पीढ़ी है। महाबोधि बिहार में जब सुबह घंटों की आवाज आती है तो एक अजब सी शांति प्रदान करती है।
Mohabodhi temple के पीछे भगवान गौतम बुद्ध की लाल बलुआ पत्थर की 7 फीट ऊंची मूर्ति है जो वज्रासन मुद्रा में है। इस मूर्ति के चारों तरफ विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्ति को एक अलग ही आकर्षण प्रदान करता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व इसी स्थान पर सम्राट अशोक में हीरो से बने राज सिंहासन को लगाया था। इस स्थान को पृथ्वी का नाभि केंद्र भी कहा जाता है। इस मूर्ति के सामने भूरे बलुआ पत्थर पर भगवान गौतम बुद्ध के पदचिन्ह बने हुए हैं। इन पद चिन्हों को धर्म चक्र परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है।
गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के दूसरे सप्ताह में इसी बोधि वृक्ष के आगे खड़ा होकर अपना समय बिताया था। इसीलिए यहां पर गौतम बुद्ध की एक खड़ी हुई मूर्ति बनी हुई है। इस खड़ी हुई मूर्ति को अनिमेष लोचन कहा जाता है जो महाबोधि बिहार के उत्तर पूर्व में है जहां पर Animesh लोचन चैत्य बना हुआ है।
महाबोधि विहार के मुख्य विहार के उत्तरी भाग को चंकमाना नाम से जाना जाता है। यह वही स्थान है जहां पर गौतम बुद्ध ने अपना तीसरा सप्ताह व्यतीत किया था। इस समय पर यहां पर एक काले पत्थर का कमल का फूल बना हुआ है जो गौतम बुद्ध का प्रतीक माना जाता है।
इस बिहार के उत्तर पश्चिम में एक छत विहीन इमारत है। जिसे रत्ना घारा के नाम से लोग जानते हैं। या वही स्थान है जहां पर गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान की प्राप्ति के बाद 4th सप्ताह व्यतीत किया था। लोगों का मानना है कि यहीं पर गौतम बुद्ध ध्यान में एकदम विलीन थे उसी समय गौतम बुध के शरीर से एक किरण की पुंज निकली। इन्हीं प्रकाश के रंगों को विभिन्न देशों के पताको ने किया गया है।
महाबोधि बिहार के उत्तरी दरवाजे से कुछ दूरी पर स्थित अजपाला निग्रोधा वृक्ष है। जहां पर भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पांचवा सप्ताह व्यतीत किया था।
महाबोधि बिहार के दाएं और स्थित मुचलिंडा झील है। जहां पर गौतम बुद्ध ने अपना छठा सप्ताह व्यतीत किया था। झील की चारों तरफ वृक्ष लगे हुए हैं। इस झील के बीच में एक बहुत विशाल गौतम बुद्ध की मूर्ति स्थापित की गई है। लोगों का कहना है कि इस मूर्ति की रक्षा यहां पर एक विशाल सांप के द्वारा की जाती है। एक दंतकथा में इस मूर्ति के संबंध में कहा गया है की भगवान बुद्ध प्रार्थना में इतने विलीन थे कि उन्हें आंधी और पानी आने का कोई ध्यान नहीं रहा इस वजह से गौतम बुध मूसलाधार बारिश में फंस गए थे तब सांपों का राजा मुचलिंडा ने अपने निवास से बाहर आकर गौतम बुद्ध की रक्षा की थी।
महाबोधि विहार के दक्षिण पूर्व में राज यातना वृक्ष है। जहां पर गौतम बुद्ध ने अपना सातवां सप्ताह व्यतीत किया था। यह वही जगह है जहां पर दो वर्मा के निवासी व्यापारी भगवान बुध से आश्रय में आने की प्रार्थना की थी। तभी से 'बुद्धम शरणम गच्छामि' का उच्चारण किया गया था। इसके बाद से या प्रार्थना बहुत प्रसिद्ध हो गई जिसे आज भी बुद्ध की प्रार्थना करने के लिए उपयोग किया जाता है।
महाबोधि मंदिर के प्रमुख मठ -Important Math of Mahabodhi Temple
तिब्बतियन मठ
तिब्बतियन मठ महाबोधि बिहार के पश्चिम में केवल 5 मिनट की पैदल यात्रा की दूरी पर स्थित है यह इस बिहार का सबसे बड़ा और पुराना मठ है। जो 1934 ईस्वी में बनाया गया था। यह निरंजना नदी के तट पर स्थित है जो बर्मी बिहार के अंदर स्थित है। इस बिहार के अंदर दो प्रार्थना करते हैं व भगवान गौतम बुद्ध की एक विशाल मूर्ति है।
थाई मठ
महाबोधि विहार से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मठ के छत को सोने के रंग से पुताई की गई है इसीलिए इसे गोल्डन मठ नाम से भी जाना जाता है। इस मठ को थाईलैंड के राजपरिवार ने गौतम बुध के स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में बनवाया था।
इंडोर सन निप्पन जापानी मंदिर -
यह मंदिर Mohabodhi temple से 11.5 किलोमीटर के दक्षिण में स्थित है। जिसका निर्माण 1972 से 1973 में किया गया था। इस मंदिर का निर्माण जापानी कला के अनुसार प्राचीन जापानी विहारओं के आधार पर लकड़ी से बनाया गया था। इस बिहार की खास बात यह है कि इस बिहार में गौतम बुद्ध से संबंधित व घटित घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।
चीनी बिहार -
चीनी विहार Mohabodhi temple के पश्चिम में 5 मिनट की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण 1945 ईस्वी में हुआ था। इस बिहार के अंदर भगवान गौतम बुद्ध की एक सोने से बनी मूर्ति रखी गई है। इस बिहार को सन 1997 में पुणे विनिर्माण करवाया गया था।
भूटानी मठ -
भूटानी मठ जापानी बिहार के उत्तर में स्थित है। इस बिहार की दीवारों पर नक्काशी की एक बहुत ही बेहतरीन कला को उधारी गई है।
वियतनामी विहार -
वियतनामी बिहार सबसे नया विहार है यह Mohabodhi temple के उत्तर में स्थित है जो 5 मिनट की पैदल यात्रा की दूरी पर स्थित है इस विहार को सन 2002 में स्थापित किया गया था। इस बिहार के अंदर बुध के शांति अवतार अवलोकितेश्वर रूप की मूर्ति की स्थापना की गई है।
उपरोक्त मठों के अलावा भी इस विहार में कई अन्य प्रकार के स्मारक स्थित हैं जो बहुत ही प्रसिद्ध हैं। भारत की सबसे गौतम बुद्ध की ऊंची मूर्ति जो 6 फीट की है जो कमल के फूल पर स्थित है। यह मूर्ति 10 फीट ऊंचे आधार पर बनी हुई है जिसे यहां के स्थानीय लोग 80 फीट ऊंचा मानते हैं।
महाबोधि मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल
राजगीर -
यदि आप बोधगया की सैर पर हैं तो आपको राजगीर जरूर घूमना चाहिए। यहां पर विश्व शांति स्तूप है जो काफी आकर्षक है। विश्व शांति स्तूप ग्रिधरकुट पहाड़ी पर बना हुआ है इसे देखने के लिए रोपवे बना हुआ है जिसके माध्यम से आप यहां तक जा सकते हैं। इसे देखने का शुल्क ₹25 है जिसे आप सुबह 8:00 बजे से दोपहर के 12:00 बजे तक देख सकते हैं। इसके बाद यह दोपहर के 2:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक खुला रहता है। इस शांति स्तूप के निकट ही वेणु वन है जहां पर गौतम बुध एक बार आए थे। राजगीर में ही विश्व प्रसिद्ध सप्तपर्णी गुफा है। जहां पर गौतम बुध के निर्वाण के बाद का पहला बौद्ध सम्मेलन आयोजित हुआ था। सप्तपर्णी गुफा बस स्टॉप से दक्षिण में गर्म जल कुंड के पास स्थित है जहां से आप 1000 सीढ़ियां चढ़ाई करके यहां तक पहुंच सकते हैं। यदि आप बस स्टॉप से सप्त करणी गुफा तक जाना चाहते हैं। तो आपको एक मात्र साधन घोड़ा गाड़ी मिलेगी जिसे यहां पर टमटम के नाम से जाना जाता है। यदि आप इस टमटम से घूमना चाहते हैं तो आपको आधे दिन का ₹100 से ₹300 तक आधा करना पड़ेगा। यदि आप यहां घूमने जाना चाहते हैं तो आप यहां ठंडे मौसम में जाइए तो यह आपके लिए अनुकूलित समय होगा।
Note : राजगीर में भारत सरकार के द्वारा अभी एक बहुत बड़ा शीशे का पुल बनाया जा रहा है। जिससे सब करणी गुफा तक जाने से रोक ब्रिज का इस्तेमाल किया जाता था अब इस शीशे के पुल का इस्तेमाल किया जाएगा।
नालंदा-
नालंदा, राजगीर से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में प्राचीन काल से ही मशहूर है। मौजूदा समय में नालंदा विश्वविद्यालय में केवल अवशेष ही मिलेंगे लेकिन कुछ समय पहले बिहार सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से पुनर्निर्माण करवाने के लिए कहा है। जिसका काम इस समय चल रहा है। यहां पर एक म्यूजियम भी है जहां पर इस में खुदाई के दौरान प्राप्त चीजों को रखा गया है।
पावापुरी -
पावापुरी नालंदा से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर है जो एक जैन तीर्थ स्थल है। पावापुरी में एक विशाल भगवान महावीर का मंदिर है।
बिहार शरीफ -
बिहार शरीफ नालंदा के पास ही है। उसका प्राचीन काल में ओदंतपुरी नाम था। इस समय यह मुस्लिम तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। बिहारशरीफ में एक बहुत बड़ा मस्जिद दरगाह मौजूद है जहां पर काफी लोग जाते हैं। यदि आप नालंदा घूमने आते हैं तो आप बिहारशरीफ जरूर जाएं।
महाबोधि टेंपल तक कैसे जाएं-
Mohabodhi temple तक जाने के लिए आप बस, ट्रेन या फ्लाइट का सहारा ले सकते हैं। तीनों माध्यम से आप Mohabodhi temple तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा यदि आप प्राइवेट वाहन से जाना चाहते हैं तो आप प्राइवेट वाहन से भी जा सकते हैं।
महाबोधि मंदिर ट्रेन से कैसे जाएं
यदि आप Mohabodhi temple ट्रेन से जाना चाहते हैं तो आप भारत के किसी भी शहर से ट्रेन पकड़कर आप 'गया जंक्शन' पहुंच सकते हैं। जहां से आप बस या टैक्सी के माध्यम से Mohabodhi temple तक आराम से जा सकते हैं। Mohabodhi temple जाने के लिए भारत सरकार के द्वारा कई ट्रेन भी चलाई जाती हैं।
महाबोधि मंदिर हवाई जहाज से कैसे जाएं
Mohabodhi temple हवाई जहाज से जाने के लिए आपको गया एयरपोर्ट जाना होगा जहां पर वीकली जहाज उपलब्ध रहती है। गया हवाई अड्डे से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर महाबोधि मंदिर स्थित है। जहां से आप बस या निजी साधनों से आसानी से आ सकते हैं।
महाबोधि मंदिर बस से कैसे जाएं
यदि आप Mohabodhi temple बस से जाना चाहते हैं तो आप भारत के किसी भी शहर से महाबोधि मंदिर तक बस पकड़कर जा सकते हैं। बोधगया के लिए गया, पटना, नालंदा, राजगीर, वाराणसी तथा कोलकाता से बस चलाई जाती है।